भायंंदर। शहर के विकास और सर्व-समाज के हित रक्षक मीरा-भायंदर महानगरपालिका के पूर्व उपमहापौर हसमुख गहलोत पर्यावरण प्रेमियों में भी शुमार हैं। पेरिस प्लास्टर समेत अन्य तत्वों से बनी मूर्तियों के स्थापना पर शहर की वायु प्रदूषित होने के साथ ही मूर्तियां विसर्जित किए जाने पर पानी जन्य प्राणियों के जान का भी खतरा बना रहता है। पिछले तीन वर्षों से पर्यावरण पूरक गणपति मूर्तियों के लिए अभियान चला रहे हसमुख गहलोत ने अपनी संकल्पना को मजबूत रूप देने के लिए रविवार, 26 मई को सुबह दस से शाम 5 बजे तक बुद्ध विहार, रामदेव पार्क, मीरारोड पूर्व में पर्यावरण पूरक श्री गणेश की मूर्तियों की प्रदर्शनी के साथ एक लघु फिल्म के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का कार्यक्रम आयोजित किया है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में शहर के पूर्व विधायक नरेंद्र मेहता उपस्थित रहेंगे। आयोजन में प्रमुख योगदान देने वाले भाजपा के मीरा-भायंदर जिला उपाध्यक्ष संतोष दीक्षित ने कहा कि देश में भाद्रपक्ष मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तिथि तक गणेशोत्सव का त्यौहार धूम-धाम से मनाया जाता है। विशेषकर महाराष्ट्र में तो हर एक घर-घर में यह त्यौहार प्रमुखता से मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि विगत कई वर्षों से स्थानीय मूर्तिकार श्री गणेश की मूर्ति बनाने में पीओपी एवं खतरनाक रासायनिक रंगों का उपयोग करते आ रहे है, पूजन उपरांत भक्तों द्वारा मूर्तियों का समुद्र, नदी या तालाब में विसर्जन कर दिया जाता है, जिसके कारण पर्यावरण साथ ही समुद्री जीवों को काफी नुकसान पहुंचता है। प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों गैर-बायोडिग्रेडेबल होती हैं और यह समुद्री जीवों के लिए बेहद हानिकारक होती है, तथा पानी के संक्षारक पदार्थ को बढ़ाकर पानी को दूषित कर देती हैं, जबकि इसके उलट पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियों विघटित होती हैं, और इसलिये पानी दूषित भी नहीं होता है। गणेश मूर्तियां बनाने के लिए कई प्रकार की चमकीली और हानिकारक धातुओं का उपयोग किया जाता है, जो शरीर के साथ संपर्क में आने पर हानिकारक होते हैं। रसायनों की मौजूदगी के कारण एलर्जी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं। जबकि इको
फ्रैंडली गणेश मूर्तियां ऐसी किसी प्रकार की हानिकारक धातुओं की चमक-दमक से नहीं बनाई जाती। धर्मानुरागी एवं पर्यावरण प्रेमी सुप्रसिद्ध उद्योगपति एवं समाजसेवी संतोष दीक्षित ने कहा कि
श्री गणेश की पूजा तो हम पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से करते हैं, तो फिर उनकी मूर्ति के विसर्जन के समय हम यह क्यों नहीं सोचते की मूर्ति भी पानी में तुरंत घुलनशील होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसका नजारा समुद्र या खाड़ी तट पर विसर्जन के दौरान पर्यावरण पूरक गणपति मूर्तियों की घुलनशीलता के रूप में देखा जा सकता है। संतोष दीक्षित ने कहा कि गणपति बप्पा सर्व-समाज, वह किसी भी भाषा में हों, आराध्य हैं, जिनका पूजन होना ही चाहिए। शहर के हित में हसमुख गहलोत के इस फैसले के साथ मैं तन-मन-धन से हूं, यह पूर्व विधायक नरेंद्र मेहता को भी बखूबी मालूम है, क्योंकि मेहता-गहलोत की विकासोन्मुखी जोड़ी जगजाहिर है।