(फादर्स डे के अवसर पर पर कविवर तुषार जोशी की कविता पर आधारित, अपने पिता स्व किशोरमल लुंकड को समर्पित डॉ मंजू मंगलप्रभात लोढ़ा की यह कविता)
धीरे से चलते हुए छोड़ते थे मेरा हाथ,
और मुझे देते थे जीने की सौगात,
लड़खड़ाती थी जब-जब मैं, थामते थे तुम ,
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम,
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम।
आकाश जितना मुझसे प्यार करते थे,
और वृक्ष रूप में मुझ पर छाया धरते थे,
मुझ जैसे छोटे से परिंदे का विशाल गगन थे तुम,
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम।
जीवन की धारा को जी कर, जीना हमको सिखलाया,
स्नेह, प्रेम और सत्य धर्म का मार्ग हमेशा दिखलाया,
सिर पर रखकर हाथ ,देते थे आशिश हमें,
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम।
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम।
आप थे तो दुनिया के सारे खिलोने हमारे थे,
आपदाओं से लड़ने की प्रेरणा थे ,
जीवन संघर्ष में आगे बढ़ने की हिम्मत थे,
जीतती जब-जब मैं नाचते थे तुम,
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम।
जिस बारीश से बचने को छतरी दिलायी,
उसी बारिश से खेलने को कागज की कश्ती भी बनानी सिखाई,
लड़ाई भी बरसात से और खेल भी बरसात से,
मतलब हर हालात का हर तरह से सामना करना सिखलाया,
दुःख में भी खुशी ढुंढना सिखलाया,
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम,
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम।
फिर हमको स्कूल भेजा और पढ़ाया, लिखाया आपने किताबें दिलायी
उनपर जिल्द भी चढ़ाई, लेबल भी लगाये और अपने हाथों से लिखे हमारे नाम ,
फिर हमारे आखों मे भरे सपने और उन्हे साकार करने की राह भी दिखायी,
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम।
वैसे तो अब आप हमारे बीच नहीं हो, पर लगता है कि यही कहीं आसपास हो,
हर बार, हर मोड़ पर राह दिखाते हो तुम,
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम ,
ओ बाबा कितने प्यारे थे तुम।