जड़खोर गौशाला के सेवार्थ श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का दूसरा दिन
संत की दृष्टि पड़ने पर जीव की मुक्ति हो जाती है ः डॉ. राजेन्द्रदासजी महाराज
संसार की जो भी वस्तु मिली है सब छोड़कर जाने के लिए मिली है
सूरत। श्री जडखोर गौशाला सेवार्थ श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन 8 से 14 जनवरी 2024 तक श्री सुरभि धाम, सूर्य प्रकाश रेजीडेंसी के पास,
महाराजा अग्रसेन गार्डन की
गली में सिटी लाइट, सूरत में किया गया है। कथा के मनोरथी गजानन्द कंसल एवं समस्त कंसल परिवार है। मनोरथी परिवार
के राकेश कंसल, प्रमोद कंसल परिवार सहित व्यासपीठ का पूजन किया।
z
राकेश भाई कंसल एवं मीडिया प्रभारी सज्जन महर्षि ने बताया कि श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन मंगलवार को पुष्करभाई दलाल, भालेश मेहता, भुपेन्द्रभाई पटेल, सुरेश अग्रवाल (मेहर यार्न), श्यामजी फागलवा, राम प्रकाश बेडिया, सुनिल गुप्ता, विजय अग्रवाल, राजेश यादव, कमल मष्करा, राजकिशोर शर्मा, पार्षद विजय चौमाल, बतौर मुख्य अतिथि उपिस्थत रहे और महाराजजी का अभिवादन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। मंच का संचालन योगेन्द्र शर्मा ने किया।
श्रीमद् जगदगुरु द्वाराचार्य मलूकपीठाधीश्वर राजेन्द्रदासजी महाराज ने सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन मंगलवार को कलियुग में
अमृत रुपी
श्रीमद् भागवत कथा का रसपान कराते हुए कहा कि सभी मानव एक ही जगह और एक ही घाट से आएं हैं। श्रृष्टिकर्ता ने संसाररुपी बगिया में
कुछ समय के लिए भेजा है। इन्ही समय के दरम्यान मानव कर्म करते हुए अपना भाग्य लिखता है। महाराजजी ने आगे संतों की महिमा का वर्णन करते हुए परम गोउपासक भगवत्प्रेमी राधा वल्लभ जालान गोलोक प्रयाण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे ऐसे गृहस्थ संत थे, जिन्होंने जीवन पर्यन्त सत्संग और सेवा परायण करते रहे। उन्होंने अपने वसीयत में लिखा था कि मेरे शरीर छोड़ने कोई आंसू न गिराये, बल्कि हरिनाम का स्मरण करे। महाराजजी ने कहा कि संत की पड़ने पर जीव की मुक्ति हो जाती है। किसी मृत शरीर अथवा चिता (शव) पर संत की दृष्टि पड़ जाये तो वह कितना भी बड़ा पापी हो मुक्त हो जाता है।
कथाकार ने आगे बताया कि मनुष्य तो निमित्त मात्र है ,जीवन में सब कुछ करने वाला परमात्मा ही है ।संसार में जब तक स्वार्थ है तब तक सभी संगी साथी है। स्वार्थ पूरा होते ही कोई अपना नहीं होता ।उन्होंने आगे बताया कि संत कबीर,दादू ,रविदास एवं रसखान आदि सभी संतो ने सच्चे संतों की महिमा का वर्णन किया है ।क्योंकि संत तो पापी, धर्मात्मा, दिन दुखी गरीब एवं अमीर सभी को एक नजर से देखते हैं। उनकी भावना तो प्राणी मात्र को संसार सागर से पार उतारना ही होती है ।जिसके ऊपर गुरु की कृपा हो जाती है और जो गुरु से अंतकरण से जुड़ जाता है वह संसार में रहकर भी अपनी आत्मा में रमण करने लगता है।
महाराजजी ने कहा कि जीवन में सत्संग का बहुत महत्व होता है और प्रभु की कृपा के बिना यह सुलभ नहीं होता है। इसलिए मानव को सत्संग को ही अक्षय निधि समझना चाहिए। मनुष्य को संसार की जो भी वस्तु मिली है, यही पर मिली है, यहीं के लिए मिली है और उसका प्रयोग कर यहीं पर छोड़कर जाने के लिए मिली है। जीवन भर कार्य करते हुए मानव अपना एक मुकाम तय करता है और जीवन के अंतिम पड़ाव में रिश्ते-नाते, बंगला-गाड़ी, सारा वैभव सब कुछ यहीं पर छोड़कर चला जाता है। न चाहते हुए भी उसे छोड़कर जाना पड़ेगा, यही जीवन का सार है। संसार की सब चीजें बनी है छोड़ने के लिए सिर्फ प्रभु स्मरण और उसका कर्म उसके साथ जाता है।
मलूक पीठाधीश्वर ने कहा कि जब कोई यह सोचता है कि उसके द्वारा सब चल रहा है तो
उससे बड़ा मूर्ख इस जगत में कोई नहीं है। श्रृष्टि का पालन हार
वही विधाता है, जिसने आपको भी संसार में भेजा है। देहाभिमानी व्यक्ति कर्ता अपने आपको मानकर श्रेय लेना चाहता है। परंतु परमात्मा ने उस व्यक्ति को
केवल निमित्त बनाया है। शेष कर्ता, अकर्ता, अन्यथाकर्ता सब परमात्मा ही हैं। महाराजजी ने कहा कि जो अपने करने के अभिमान में रहता है वह अपना नुकसान करता है। जबकि भगवान के भरोसे रहने वाले हर जगह आनंद में रहते हैं। सांसारिक लोग स्वार्थपूर्ति का ही ख्याल रखते हैं और उसी के लिए संबंध रखते हैं।