जड़खोर गौशाला के सेवार्थ श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का तीसरा दिन

  1. जड़खोर गौशाला के सेवार्थ श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का तीसरा दिन

 

श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अनुपम-अगाध प्रेम हैः डॉ. राजेन्द्रदासजी महाराज

 

ब्रज का तो कण कण कृष्णमय है, मनुष्य तो मनुष्य ब्रज में अगर कोई जंतु भी पहुंच जाए तो वह भगवत स्वरूप हो जाता है

सूरत। श्री जड़खोर गौशाला सेवार्थ श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन 8 से 14 जनवरी 2024 तक श्री सुरभि धाम, सूर्य प्रकाश रेजीडेंसी के पास,

महाराजा अग्रसेन गार्डन की

 

गली में सिटी लाइट, सूरत में किया गया है। कथा के मनोरथी गजानन्द कंसल एवं समस्त कंसल परिवार है। मनोरथी परिवार

के राकेश कंसल, प्रमोद कंसल परिवार सहित व्यासपीठ का पूजन किया।

 

 

 

 

राकेश भाई कंसल एवं मीडिया प्रभारी सज्जन महर्षि ने बताया कि श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन बुधवार को राजेन्द्र खेतान, राजकुमार सराफ,
महेश मित्तल, सुशील बजाज, सुनिल अग्रवाल, अरुण अग्रवाल (संगम), सुमित अग्रवाल, रामरतन भूतड़ा, रामनारायण चांडक, सीए राहुल अग्रवाल, महेन्द्र
शर्मा, दिनेश राजरोहित (पार्षद) नन्दकिशोर शर्मा, बतौर मुख्य अतिथि उपिस्थत रहे और महाराजजी का अभिवादन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। मंच का
संचालन योगेन्द्र शर्मा ने किया।

 

 

 

 

 

परम पवित्र धनुर्मलमास के पावन अवसर पर यमुनाजी की बहन तापी मैया के पावन तट पर आस्तिक, धार्मिक एवं औद्योगिक नगरी सूरत के सुरभिधाम
मंडप में श्रीमद् जगदगुरु द्वाराचार्य मलूकपीठाधीश्वर राजेन्द्रदासजी महाराज ने सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन बुधवार को
कलियुग में

अमृत रुपी

श्रीमद् भागवत कथा का रसपान कराते हुए महाराज अक्रुर, नारद-गोपी संवाद, उद्धव गोपी संवाद की बहुत मार्मिक प्रस्तुति दी।
महाराजी ने कहा कि वृन्दा देवी ने जहां तप किया है वही वृन्दावन है। पद्म पुराण में भगवान शंकर ने माता पर्वती से वृन्दावन महात्म्य का वर्णन किया है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों से प्रतिज्ञा किया था कि हम व्रजमंडल छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। जब अक्रुरजी श्रीकृष्ण एवं बलराम को लेने आये तो सभी
गोपियां रोने लगीं। गोपियों का यह रुदन वियोग नहीं विरह का रुदन था। अक्रुरजी को भगवान श्रीकृष्ण ने चतुर्भुज रुप में दर्शन दिये। जब यमुनाजी में
स्नान करने गये तो जल में और जब निकले तो बाहर दोनों जगह भगवान ने अपने स्वरुप का दर्शन दिये।

मलूकपीठाधीश्वर जी महाराज ने कहा कि भगवान का नाम यानी हरिनाम भव रोग की औषधि है। भगवान कहते हैं कि जहां भी भक्तगण मिलकर संकीर्तन
करते हैं वहां मैं अवश्य रहता हूं। एक बार नारद जी जब वृन्दावनधाम गये तो गोपियों से कहा कि अब भगवान श्रीकृष्णा द्वारका से यहां नहीं आएंगे, तब
गोपियों ने संकीर्तन करने लगीं तो ठाकुरजी वहां पहुंच गये। नारदजी ने गोपियों के प्रेम के बारे में पूछा तो भगवान श्री कृष्ण ने एक बार पेट दर्द का बहना
बनाया और कहा कि किसी प्रेमी-भक्त के चरण रज पीने पर ही यह दर्द ठीक होगी। तब नारद जी कृष्णा प्रिया रुक्मिणी सहित तीनों लोकों में यहां तक कि
ब्रह्मा, शंकर के पास भी गये लेकिन कहीं भी उन्हें चरणरज नहीं मिला। जब द्वारका वापस आये तो अपबीती बताई और चरणरज नहीं मिलने की बात
कही। तब भगवान श्री कृष्ण ने पूछा क्या वृन्दावन गये थे। तबी नारद जी ने संकल्प द्वारा तुरंत वृन्दावन पहुंच गये। वहां प्रियतम के पेट दर्द की बात
सुनते ही हजारों गोपियां चरणरज देने लगीं। तब नारदजी ने कहा आप जानती हो किसे चरणरज दे रही हो नरक भोगना पड़ेगा। तब गोपियों ने कहा कि
हम करोड़ों कल्प तक नरक भोगना पसंद करुंगी, बस हमारे प्रियतम मुस्कराते रहे।

राजेंद्र दास महाराज ने आगे बताया कि व्यापक ब्रह्म के रूप में प्रभु को याद करें। भगवत विरह में संत द्वारा पत्थर पर पांव रखने मात्र से पत्थर पिघल
गया। इस तरह की चाहना प्रभु प्राप्ति के लिए होनी चाहिए। उन्होंने आगे श्री कृष्ण द्वारा उद्धवजी को अपने स्वरूप का दर्शन कराना एवं गोपियों के कृष्ण
के प्रति विरह वेदना के प्रसंग का वर्णन किया। कथा कार ने बताया कि ब्रज का तो कण कण कृष्णमय है, मनुष्य तो मनुष्य ब्रज में अगर कोई जंतु भी
पहुंच जाए तो वह भगवत स्वरूप हो जाता है। यह है वृंदावन धाम की महिमा।

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