*गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर*
श्रीकृष्ण का जन्म देवकी और वासुदेव से हुआ था। वासु का अर्थ है, ‘प्राण’ और देवकी का अर्थ है, शरीर। कंस का अर्थ है ‘अहंकार’। ‘अहंकार’ रुपी कंस, ‘शरीर’ रुपी देवकी का भाई है। तो कंस से वासुदेव और देवकी को बंदी बनाने का अर्थ यही है कि अहंकार, शरीर और श्वास को बंदी बना लेता है ।
भगवान कृष्ण को हमेशा नीले रंग में दिखाया जाता है। नीला रंग पारदर्शिता को दर्शाता है । श्रीकृष्ण का नीला रंग भौतिक शरीर को नहीं बल्कि भीतर के अनंत आकाश को इंगित करता है जो आनंद और आत्मा का प्रतीक है।
जब रात के 12 बजे कारागार में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब सभी चौकीदार और प्रहरी सो गए। हमारी आँखें, नाक, कान, जीभ और त्वचा – पॉंच इन्द्रियाँ ही पाँच प्रहरी हैं जो आपको बाहर संसार में व्यस्त रखते हैं इसलिए आप भीतर के उस अनंत आकाश को नहीं देख पाते । वे आपको आत्मा का अनुभव नहीं करने देते।
इसीलिए जब सभी प्रहरी सो गए तब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। ऐसा इसलिए हुआ ताकि प्राण उनके शरीर में प्रवेश कर सके और उस परमानन्द को संसार में लाया जा सके। वासुदेव जी को बालक कृष्ण को एक टोकरी में लेकर, अपने सर पर रखकर यमुना नदी को पार करते हुए शिशु कृष्ण को गोकुल लेकर जाना था। बारिश हो रही थी और जब वह नदी पार कर रहे थे तो नदी में पानी और ऊपर चढ़ना शुरू हो गया। यमुना नदी प्रेम की प्रतीक है। प्रेम की लहर तब तक ऊँची उठती रहती है जब तक कि उसे अनंत की एक झलक नहीं मिल जाती। फिर यह मौन के स्पर्श के लिए नीचे आ जाती है। इसीलिए जब लोग संगीत बनाते हैं तो वहाँ भी व्यक्ति ‘ऊपर जाता है’ और फिर ‘नीचे आता है’- ठीक यमुना नदी की तरह। गायन में व्यक्ति लगातार गाते रह सकते हैं लेकिन गानों के बीच में मौन की गहराई का और अनंत की ऊंचाई के आनंद का आंशिक क्षण होना चाहिए। यह बहुत आवश्यक है। अधिकतर भजन गायकों के समूह बहुत अच्छे से गाते हैं जैसे कि वे किसी स्पर्धा में हों लेकिन वे दो भजनों के बीच में रुकते नहीं और भजनों के बीच की जगह का अनुभव नहीं करते।
वासुदेव शिशु श्रीकृष्ण को यशोदा के पास गोकुल ले गए। अनंतता का जन्म तो योग और ध्यान से ही संभव होता है लेकिन अनंतता का पोषण केवल योग और ध्यान से नहीं किया जा सकता। इसे पोषित करने के लिए भक्ति, श्रद्धा और प्रेम की आवश्यकता होती है। श्रीकृष्ण का पालन-पोषण माँ यशोदा ने किया। माँ यशोदा भक्ति, श्रद्धा और विश्वास की प्रतीक हैं ।
गोकुल में, यशोदा अपनी नवजात बालिका के साथ सो रही थीं। वासुदेव आधी रात को गए और उन्होंने उनकी बालिका को श्रीकृष्ण के साथ बदल दिया। वे बालिका को अपने साथ ले आए और श्रीकृष्ण को यशोदा के घर में छोड़ आए, जहाँ श्रीकृष्ण बड़े हुए। केवल भक्ति ही हमारे भीतर के आनंद को विकसित कर सकती है। माँ यशोदा श्रद्धा, आस्था और भक्ति की प्रतीक हैं। भगवान श्रीकृष्ण के भीतर मानव शरीर के सभी गुणों का जन्म होता है। श्रीकृष्ण में आप सम्पूर्ण व्यक्तित्व को हर दृष्टिकोण से देखते हैं। वे बहुआयामी हैं।
श्रीकृष्ण मानव क्षमता का पूर्ण प्रस्फुटन हैं। आप उनको बुद्ध की तरह मौन में बैठे देख सकते हैं और आप उनको नृत्य करते देख सकते हैं। आप उनको युद्ध के मैदान में पाते हैं और आप उनको घनिष्ठ मित्र के रूप में भी पाते हैं; यहाँ तक कि आप उनको एक बहुत शरारती बालक के रूप में भी पाते हैं। श्रीकृष्ण में, अस्तित्व सभी प्रकार से पूरी तरह से खिल गया है।