बदलाव की हवा

मैंने कहा कि मुझको यूं ही छोड़ दीजिए
वो बोली पहले दिल तो मेरा तोड़ दीजिए

साथी यूं कोई साथ नहीं देता उम्र भर
सांसों के सिलसिले में सांस जोड़ दीजिए

दो शब्द मोहब्बत के भी जब हों न मयस्सर
रिश्ते फिजूल के हैं उन्हें तोड़ दीजिए

जिसने बनाया घोंसला वो दर-बदर हुआ
कौओं की सल्तनत का ताज फोड़ दीजिए

सागर को नहीं पालती सूखी हुई नदी
मरुथल में है पानी ये वहम छोड़ दीजिए

चलने दो हर तरफ अब बदलाव की हवा
धारा जो बह रही है उसे मोड दीजिए।।

-डॉ वागीश सारस्वत
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