मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर सबसे ज्यादा उत्साहित उत्तर भारतीय समाज के नेताओं को टिकट की रेस से जिस तरह से साइड लाइन किया गया, उसे देखते हुए खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है। इसमें जरा भी संदेह नहीं कि मुंबई में उत्तर भारतीय मतदाताओं की संख्या निर्णायक स्थिति में है, परंतु यह भी सच है कि उत्तर भारतीय मतदाता कई खेमों में बैठे हुए हैं। यहां तक कि एक ही पार्टी के नेताओं के अलग-अलग पावर बैंक खुले हुए हैं। उत्तर भारतीय मतदाताओं का सबसे बड़ा भाग भाजपा के साथ जुड़ा हुआ है। ऐसे में उत्तर भारतीय नेताओं द्वारा टिकट मांगना न्यायिक और पार्टी के लिए फायदेमंद भी था। उत्तर भारतीय मतदाताओं को पूरी उम्मीद थी कि बीजेपी कम से कम पांच नेताओं को टिकट अवश्य देगी, परंतु सिर्फ विद्या ठाकुर को ही टिकट दिया गया। उत्तर पश्चिम मुंबई और उत्तर मुंबई की अनेक सीटों पर गौर करें तो यहां कम से कम 15 से 25 प्रतिशत उत्तर भारतीय हैं। ऐसे में इन स्थानों पर उत्तर भारतीय चेहरों को मैदान में उतारकर भाजपा एक सुनिश्चित जीत हासिल कर सकती थी। अनेक नेताओं ने जमीनी स्तर पर पूरी तैयारी भी कर रखी थी। संपर्क से लेकर विश्वास हासिल करने तक सारी प्रक्रियाएं पूर्ण हो चुकी थी। परंतु जिस तरह से पार्टी द्वारा उत्तर भारतीय नेताओं को लाल झंडी दिखाई गई, उससे उनकी सारी तैयारियों पर पानी फिर गया। राजहंस सिंह, ठाकुर रमेश सिंह, अमरजीत सिंह, संजय उपाध्याय, विनोद मिश्रा, संजय पांडे, आर यू सिंह, दीपक नंदलाल सिंह, अमरजीत मिश्रा, नरेंद्र मोहन कृपाशंकर सिंह, ज्ञान मूर्ति शर्मा, जयप्रकाश सिंह, नितेश राजहंस सिंह, उदय प्रताप सिंह, बृजेश सिंह, संजय ठाकुर जैसे दर्जनों ऐसे उत्तर भारतीय नेताओं के नाम हैं, जो पूरी तैयारी और ताकत के साथ चुनाव लड़कर जीत सकते थे। वैसे इस बार का चुनाव भाजपा के लिए अत्यंत चुनौती पूर्ण है। यही कारण है कि वह फूंक फूंक कर कदम उठा रही है। परंतु मुंबई में टिकट बंटवारे को लेकर उसकी दूरदर्शिता पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कांग्रेस के शासनकाल में उत्तर भारतीय नेताओं का जो जलवा रहा, उसकी वापसी संभव नहीं है। आज कोई भी उत्तर भारतीय नेता इस स्थिति में नहीं है कि वह कॉर्पोरेशन चुनाव में भी किसी को टिकट दिलाने की गारंटी दे सके। भाजपा के प्रदेश कमान ने पूरी तरह से मान लिया है कि उत्तर भारतीय योगी और मोदी को छोड़कर कहीं और जाने वाले नही हैं। मुंबई के बाहर की बात करें तो मीरा भायंदर और नालासोपारा ऐसी विधानसभा है, जहां उत्तर भारतीय प्रत्याशी आसानी से जीत हासिल कर सकता है। मीरा भायंदर महानगरपालिका में लगातार चार बार नगरसेवक चुने जाने वाले मदन उदितनारायण सिंह और नालासोपारा से कृपाशंकर सिंह को टिकट देकर वहां की अनिश्चित स्थिति को निश्चित जीत में बदला जा सकता था। एक उत्तर भारतीय युवा नेता के अनुसार बीजेपी जेहन में बपौती, टिकट की कटौती वाले ढर्रे पर चल रही है। परिवारवाद का विरोध करने वाली भाजपा के प्रत्याशियों पर नजर दौड़ाएं तो उसकी कथनी और करनी में स्पष्ट अंतर दिखाई दे रहा है।
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