एक बार फिर मुश्किल होती नरेंद्र मेहता के जीत की राह – शिवपूजन पांडे, वरिष्ठ पत्रकार

भायंदर। महाराष्ट्र में चुनावी बिगुल बजाने के साथ-साथ मीरा भायंदर विधानसभा में भी महासंग्राम छिड़ चुका है। भाजपा से टिकट की बाजी मारने वाले पूर्व विधायक नरेंद्र मेहता के समर्थक सबसे ज्यादा उत्साहित नजर आ रहे हैं। 5 वर्षों तक राजनीतिक वनवास झेलने वाले मेहता के लिए यह चुनाव करो या मरो का चुनाव है। अलबत्ता टिकट की रेस से बाहर जा रहे मेहता ने अप्रत्याशित रूप से टिकट प्राप्त कर पहली बाजी मार ली है। वर्तमान विधायक गीता जैन, एडवोकेट रवि व्यास तथा विक्रम प्रताप सिंह के समर्थकों में साफ तौर पर निराशा दिखाई दे रही है। टिकट घोषणा के अंतिम दिन तक गीता जैन पूरे आत्मविश्वास के साथ लोगों से मिल रही थी। उनकी बॉडी लैंग्वेज और वक्तव्य से साफ नजर आ रहा था कि टिकट उन्हें ही मिलेगा। परंतु अंतिम क्षणों में नरेंद्र मेहता ने जिस तरह से भाजपा से टिकट ले लिया, उससे गीता जैन के साथ-साथ टिकट की रेस में खड़े अन्य प्रत्याशियों को भी स्तब्ध कर दिया। गीता जैन एक बार फिर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ेंगी। मेहता के समर्थकों को भले ही यह लड़ाई आसान लग रही हो, परंतु सच्चाई यह है कि मेहता के लिए जीत की राह आसान नहीं है। मेहता समर्थकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि गीता जैन पिछली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नरेंद्र मेहता को पटकनी दे चुकी हैं ।एक तरफ परंपरागत वोट बैंक के साथ कांग्रेस प्रत्याशी मुजफ्फर हुसैन चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इस बार शरद पवार की राष्ट्रवादी पार्टी और उद्धव बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना का सपोर्ट हासिल होने से वह अपनी विजय सुनिश्चित मान रहे हैं। पूर्व नगरसेवक हंसू पांडे उत्तर भारतीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में डट गए हैं। देखा जाए तो श्री पांडे कांग्रेस का कम, भाजपा का ज्यादा नुकसान करेंगे। उनके समर्थकों में ज्यादातर उत्तर भारतीय हैं, जो भाजपा के परंपरागत वोटर माने जाते हैं। पूर्व नगरसेवक तथा एडवोकेट रवि व्यास के अत्यंत करीबी सुरेश खंडेलवाल भी नामांकन दाखिल कर महासंग्राम में उतर चुके हैं। उन्होंने जिस तरह से जैन समाज, मारवाड़ी समाज और राजस्थानी समाज की संस्थाओं द्वारा समर्थन मिलने का दावा किया है, उससे नरेंद्र मेहता के विजय रथ की रफ्तार पर प्रतिकूल असर पड़ना स्वाभाविक है । वर्तमान विधायक गीता जैन की बात करें तो पिछले 5 वर्षों में उन्होंने अपना साइलेंट वोट बैंक खड़ा किया है। साथ ही जैन समाज और शिंदे गुट के समर्थकों के साथ-साथ मेहता से नाराज उत्तर भारतीयों का गुप्त सपोर्ट मिलना तय है। ऐसे में गीता जैन की ताकत को कम आंकना मेहता समर्थकों की भारी भूल साबित हो सकती है। श्रीमती जैन एकमात्र महिला उम्मीदवार हैं, ऐसे में महिला मतदाताओं का वे भावनात्मक लाभ उठा सकती हैं। शिक्षित होने के साथ-साथ साफ सुथरी छवि से उनको बड़ा लाभ मिल सकता है। जहां तक निर्दलीय प्रत्याशी अरुण कदम का सवाल है, इसमें कोई दो राय नहीं कि उन्होंने जनता के बीच अच्छा काम किया है। यही कारण है कि उन्हें सभी वर्गों का वोट मिलेगा। उनसे किसी भी पार्टी को कोई नुकसान होने के आसार नहीं है। फिलहाल उम्मीदवारों के साथ-साथ जनता ने भी अगला विधायक चुनने के लिए अपनी कमर कस ली है।