जब जीव का आत्मोदय होता है व् अनंत जन्मों का पुण्य इक्क्ठा होता है तब भागवत श्रवण का अवसर मिलता है व् सत्संग से अज्ञानता से लगे मोह का विनाश होता है। उपरोक्त उदगार हुडीलवाल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दूसरे दिन सोमवार को सिटीलाईट पर महाराजा अग्रसेन भवन के पंचवटी हॉल में व्यास पीठ से कथा वाचक डॉ.राघवाचार्य महाराज ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि जैसे गंगा की धारा अनेक धाराओं में बटने पर कमजोर हो जाती उसी प्रकार हमारी प्रेम की धारा भी संसार की मोहरूपी कई धाराओं में बंट जाती है। हमें हमारी प्रेम रुपी धारा को गोविन्द के चरणों में समर्पित करनी चाहिए। भागवत महापुराण में ज्ञान व भक्ति को विशेष रूप से निरूपित कि गया है। कथा वाचक ने आगे बताया कि भागवत महापुराण गायत्री महामंत्र का सार है।
भक्तों की वास्तविक संपति भागवत महापुराण हैं यह ग्रन्थ सत्य से सम्पुटित है और सत्य ही भगवन का नाम,धाम व् लीला है महाराज ने कहा कि भागवत कथा में परम धर्म का संकेत है यानि धर्म के अंदर से कपट को निकलकर निश्वार्थ रूप से भक्ति करना ही परम धर्म है। भगवत भक्ति में कोई हेतु न हो व् भक्ति उत्तरोत्तर बढने वाली हो यही भक्ति की दो विशेषताए है कथा में ध्रुव चरित्र व् सती चरित्र का वर्णन किया गया मंगलवार को जड़भरत आदि प्रसंगो का वर्णन होगा।