हरि का नाम अपने आम में महामंत्र है-डॉ. राघवाचार्य


*श्री रामावतार व श्री कृष्ण जन्मोत्सव आज*

सुरुचि को अपने सौभाग्य का इतना अभिमान था कि उसने ध्रुव को डांटा और कहा कि इस गोद में बैठने का अधिकार तेरा नहीं है, अगर इस गोद में बैठना है तो पहले भगवत भक्ति करके इस शरीर का त्याग कर और मेरे गर्भ से जन्म लेकर मेरा पुत्र बन तभी तू इस गोद में बैठने का अधिकारी होगा । उपरोक्त उदगार हुडील वाला परिवार द्वारा आयोजित भागवत कथा के तीसरे दिन मंगलवार को व्यास पीठ से डॉ. राघवाचार्य ने व्यक्त किये। फिर ध्रुव का अपनी मां सुनीति के पास आना व बाद में 5 वर्ष की उम्र में तपस्या के लिए जाने का वर्णन किया .उसके बाद रास्ते में नारद ऋषि द्वारा ध्रुव को मंत्र दीक्षा देकर यमुना में स्नान कर प्रभु
भक्ति करने का कहा, कथा वाचक ने आगे कहा की गुरु मुख से लिए हुए मंत्र में ही मंत्रत्व आता है। इसलिए शास्त्रों में भी कहा है कि सद्गुरु से विधिपूर्वक मंत्र लेकर जाप करें तभी उसका फल मिलता है, किंतु हरि का नाम तो कहीं भी, कभी भी ले सकते है क्योंकि हरि का नाम अपने आप में महामंत्र है फिर ध्रुव बालू से भगवान की मूर्ति की कल्पना कर प्रभु भक्ति में लीन हो गया। डॉ. राघवाचार्य ने आगे बताया की प्रभु तो कण -कण में है, यत्र तत्र सवर्त्र है, मगर जिस स्थान पर सद्भाव उत्पन्न होता है वही स्थान भक्ति के लिए सर्वोपरि होता है, इसीलिए देवालय में प्रभु की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है, विधि व औपचारिकता के साथ साथ भावना होने पर ही भक्ति का फल मिलता है, फिर ध्रुव का देव विमान से बैकुंठ धाम जाना आदि प्रसंगो का वर्णन किया । रात्रि को कथा स्थल पर सुंदरकांड पाठ किया गया । बुधवार को गजेंद्र मोक्ष, समुद्र मंथन, श्री रामावतार व श्री कृष्ण जन्मोत्सव कार्यक्रम होगा।