खुशहाल जीवन का आनंद लेने के लिए कुंजी :- शारीरिक स्वास्थ्य बहुत ज़रूरी है- पद्मम श्री डॉ सुधीर शाह

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सिटीलाइट में सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12.15 बजे तक जीवन आदर्श उत्कर्ष परिषद द्वारा 40th Health (Doctor) Seminar का आयोजन किया गया।
हमारा उदेश्य – “आपके स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता जीवन आदर्श उत्कर्ष परिषद के संस्थापक श्री श्रीकान्तजी मूंन्दड़ा ने बताया कि इस जन कल्याणकारी आयोजन (नर-सेवा समाज सेवा) में डॉक्टर (पदमश्री) Senior Neurologist of Ahmedabad Shri Sudhir Shah DM (Neurology) द्वारा Happiness के बारे में विस्तृत रूप से श्रोताओं को जागरूक किया। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए श्रीकांत मूंदड़ा, बिनय अग्रवाल, निर्मलेश आर्य, अतुल बागड़ एव पूरी टीम मेहनत कर रही है। सेमिनार में आनेवाले लोगों के लिए अल्पाहार की व्यवस्था की गई है।
डॉक्टर साहब ने बताया कि जीवन का उद्देश्य खुश और शांतिपूर्ण रहना और दूसरों को खुश और शांतिपूर्ण बनाना है।
खुशी एक यात्रा है, मंजिल नहीं।
हम अपनी खुशी के प्रभारी हैं।
कोई और नहीं।
कैसे खुश रहें ?
खुशहाल जीवन का आनंद लेने के लिए कुंजी :- शारीरिक स्वास्थ्य बहुत ज़रूरी है। खराब स्वास्थ्य हमें खुश रहने की अनुमति नहीं दे सकता। इसलिए सही खाएं, व्यायाम करें, पर्याप्त नींद लें और आराम करना सीखें। इसके अलावा खूब हंसे और खूब प्यार करें। उचित व्यायाम ज़रूरी है। चलना, दौड़ना, जिम, तैराकी और एरोबिक्स अच्छे व्यायाम के उदाहरण हैं। प्रतिरोध प्रशिक्षण, भारोत्तोलन और मालिश मांसपेशियों के लिए अच्छे हैं। योग और प्राणायाम शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति और आनंद के लिए बहुत अच्छे हैं।

हमारे जीवन में खुशी बनाए रखने में रिश्ते बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर हम अपने रिश्तों को सफलतापूर्वक संभालते हैं, तो जीवन बहुत आसान हो जाता है वरना यह निश्चित रूप से हमारे जीवन की शांति को भंग कर सकता है।
इसलिए, हमें पाँच (5) बेहतरीन रिश्ते बनाए रखने और उनका पालन-पोषण करना है: अपने जीवनसाथी, बच्चों, माता-पिता और ससुराल वालों, दोस्तों और हमारे कार्यस्थल पर सभी लोगों के साथ संबंध शिष्टाचार बहुत महत्वपूर्ण हैं। सरल हाव-भाव और शिष्टाचार खुशी अर्जित करने में बहुत मदद करते हैं।
मुस्कुराते रहें। मुस्कुराहट बहुत सारी समस्याओं का समाधान करती है। लोगों को शुभकामनाएँ देते रहें। अपनी भावनाओं को व्यक्त करें और दिल से व्यक्त करें। “धन्यवाद” ।
“मुझे आपकी परवाह है”।
“अपना ख्याल रखें।
“अगर मैंने आपको दु:ख पहुँचाया है तो मुझे खेद है”।
सच्चे दिल से और दिल की गहराई से हँसें।
अपनी गलतियों पर हँसे।

जीवन दर्शन के 5 सार्वभौमिक नियम : – आकर्षण का नियम- हम जो भी अपने दिल की गहराई से चाहते हैं, वह अंततः वास्तविकता में बदल जाता है। कर्म का नियम- जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। इसलिए, दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ दो और सर्वश्रेष्ठ तुम्हारे पास वापस आएगा। भाग्य का नियम- जहाँ तक भाग्य का सवाल है, किसी को भी समय से पहले या उससे ज़्यादा कुछ नहीं मिलता। अनित्यता का नियम- “कुछ भी स्थायी नहीं है”। हर चीज़ का अपना जीवन होता है। यह क्षण भी बीत जाएगा, चाहे वह अच्छा हो या बुरा । जुड़ाव का नियम- “हर चीज़ हर चीज़ से जुड़ी हुई है और हर चीज़ हर चीज़ को प्रभावित करती है।” इसलिए व्यापक दृष्टिकोण से सोचें। परम सुख :- खुशी हमारे अपने अस्तित्व की प्रकृति है। दूसरे शब्दों में कहे तो खुशी हमारे अंदर ही है। हमारा अपना आंतरिक अस्तित्व आनंद से भरा हुआ है। यही कारण है कि हम खुद से प्यार करते हैं। असली और स्थायी खुशी कहीं बाहर नहीं है। अगर हम खुद को खोजें और अपने दुखों के कारणों की पहचान करें और फिर उनसे छुटकारा पाएं, तो हम सभी अपने आनंद को फिर से पा सकते हैं। आप दुनिया को जो कुछ भी देते हैं, वही हमेशा आपके पास वापस आता है। दूसरे शब्दों में, जो कुछ भी हम अपने लिए चाहते हैं, हमें दूसरों को देना होगा। अगर हमें प्यार चाहिए, तो हमें प्यार देना होगा। अगर हमें सम्मान चाहिए, तो हमें सम्मान देना होगा। इसलिए अगर हमें खुशी चाहिए, तो हमें खुशी देनी होगी… इतना ही सरल है !! क्षमा क्रोध का प्रतिकारक है। अगर लोग आपको दुख पहुँचाते हैं तो उन्हें क्षमा कर दें। सही होने से ज़्यादा ज़रूरी है दयालु होना। क्षमा खुशी की कुंजी है। सबसे पहले माफ़ करना सबसे बहादुरी है। इसी तरह अगर आपने किसी को दु:ख पहुँचाया है तो माफ़ी माँग लें। दयालु बनें और लोगों की मदद करें। आप जो भी कर सकते हैं, उनकी मदद करें। दूसरों के प्रति दयालुता, ईमानदारी और सम्मान एक इंसान के बहुत महत्वपूर्ण मूल गुण हैं। हमें लोगों की आलोचना नहीं करनी चाहिए। लोगों से प्यार करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है क्योंकि जीवन बहुत छोटा है। तो लोगों की आलोचना करने के लिए कोई समय कैसे निकाल सकता है? साथ ही हमें दूसरों से अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए।
जब तक हम अपने को नियंत्रित नहीं कर सकते, तब तक परमानन्द की प्राप्ति असंभव है
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सच्चा आनंद तो आतंरिक ही है जो तत्व चिंतन ( फिलोसोफी ), सद्गुण पालन , मनोनिग्रह एवं आध्यात्मिक साधना से ही प्राप्त होता है। तो जानिए जीवन की फिलोसोफी के पांच शाश्वत नियम। ( 5 Universal law of philosophy of life )
Law of attraction : आकर्षण के नियम – हम जिसे दिल से और तीव्र गति से चाहते हैं अंत में वह वास्तविकता बन जाती है।जिस पर हम पूर्णरूप से केंद्रित होकर इच्छा करते हैं वह हमारे पास खिंचा चला आता है। हमारे प्रत्येक विचार और इच्छा अंत में मूर्तरूप धारण करते है। इसलिए हमेशा अपने लिए सुख और आनंद की कामना करो। पूरे विश्वास के साथ मनो की तुम खुश हो, सुखी हो। इसे एक कागज पर लिखकर ऐसे रखो की जब तक जीवित रहो तब तक के लिए तुम्हे तुम्हारी इच्छित वास्तु मिल गयी है ……….फिर देखो कुदरत का चमत्कार ………
* Law of Karma : कर्म का सिद्धांत – तुम जो करोगे वही पाओगे। यदि भला करोगे तो तुम्हारा भी भला ही होगा।
इसलिए तुम्हारे पास जो सर्वश्रेष्ठ है उसे विश्व को दो और वही तुम्हारे पास लौटकर वापस आएगा।

*Law of Destiny:भाग्य का नियम – जो तुम्हारे भाग्य में है उससे ज्यादा और निश्चित समय के पहले तुम्हे कभी भी मिलनेवाला नहीं है, इसलिए धीरज रखो और पुरुर्षार्थ करो।
* Law of Impermanence : अस्थायित्व का नियम : कुछ भी स्थायी नहीं है। प्रत्येक वास्तु का अपना जीवनकाल होता है। यह समय भी छाहे अच्छा हो या ख़राब चला ही जाता है, इसलिए स्वस्थता बनाये रखे।

*Law of Connectedness:जुड़ाव का नियम – चेतन अथवा जड़ प्रत्येक वास्तु एक दूसरी वास्तु से जुडी हुई है और प्रत्येक एक दूसरे पर असर करति है। जिस पर व्यापक दृष्टिकोण से विचार करना चाहिए।

परमानन्द : परमसुख
———————— सुख हमारे खुद के अस्तित्व का स्वभाव है। दूसरे शब्दों में कहिये तो सुख हमारे अंदर ही है। हमारी खुद की आतंरिक चेतना तो सत, चित और आनंद से भरी है। इसी आनंद के कारन हम खुद से प्रेम करते है। मृग की कस्तूरी की तरह हम बाहर सुख की खोज करते रहते है। लेकिन कस्तूरी रूपी सुख तो हमारे अंदर ही है। जिसे अपने अंदर झांक कर देख सकते है। लेकिन हम अपने दुखों के कारन उसे पहचान नहीं नहीं पा रहे है। उससे छुटकारा पा लेने के बाद अपने सुख को फिर से खोज सकते है। हमारे दुखों का मूल हमारे मन में विद्यमान अविद्या, अज्ञान एवं मोह ही मुख्या है क्योकि उससे उत्पन्न विचार , इच्छा , विकार , माया ,लोभ , राग – द्वेष, अहंकार इत्यादि हमारे दुःख का कारन है। यदि हम इसे समझ कर एक एक करके इससे मुक्त हो सके तो हम परमानन्द की प्राप्ति कर सकते है , दूसरे शब्दों में जब तक हम अपने मन को काबू में नहीं कर सकते तब तक परमानन्द की प्राप्ति असंभव है। स्थायी सुख के कई गूढ़ नियम है। हम उसे आध्यात्मिकता के क्वाण्टम के नियम कह सकते है। आतंरिक अमूल्य वस्तुओ की प्राप्ति के लिए यह नियम है, वह है आनंद , परमानन्द , शांति , प्रेम ,आदर प्राप्त करने का नियम है।

पहला नियम यह है की आतंरिक दुनिया में कोई अदला- बदली सम्भव नहीं है। कहने का अर्थ यह है की तुम दुनिया को जो दोगे तुम्हे बदले में वही मिलेगा। तुम प्रेम दोगे तो प्रेम मिल…