मुंबई। धर्म, जाति और राजनीति में बंटे उत्तर भारतीय समाज को संगठित होने की आवश्यकता है। जब तक हमारा समाज संगठित नहीं होगा, तब तक हम अपने अधिकारों की आवाज नहीं उठा सकते । उत्तर भारतीय समाज के वरिष्ठ नेता, पूर्व विधायक तथा उत्तर भारतीय महासंघ के संस्थापक घनश्याम दुबे ने उपरोक्त बातें कही। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद हमारा समाज पिछली पंक्ति में खड़ा नजर आ रहा है। हमारी आधी संख्या वाला समाज संगठित होने के कारण अग्रिम पंक्ति में खड़ा है। उन्होंने कहा कि जब तक उत्तर भारतीय समाज के बड़े-बड़े नेता एक प्लेटफार्म पर नजर नहीं आते, तब तक हमें अपने अधिकारों के लिए दूसरों पर आश्रित रहना होगा। घनश्याम दुबे ने कहा कि आज हम इतनी बड़ी संख्या में है कि अपने समाज जुड़े दर्जनों विधायक महाराष्ट्र विधानसभा में भेज सकते हैं। पहले हमारी संख्या भले कम थी, परंतु हमारे समाज के नेताओं का हर पार्टियों में आदर सम्मान मिलता था। उत्तर भारतीय समाज के नेता विभिन्न राजनीतिक दलों में मजबूत राजनीतिक पकड़ वाले नेता माने जाते रहे। परंतु आज स्थिति यह है कि हमें छोटा से छोटा पद प्राप्त करने के लिए भीदूसरे समाज के नेताओं की सिफारिश करनी पड़ रही है। श्री दुबे ने कहा कि समय आ गया है कि उत्तर भारतीय समाज महाराष्ट्र की सक्रिय राजनीति में शामिल होकर, अपना फैसला खुद करें। परंतु इसके लिए समूचे समाज को संगठित होना पड़ेगा। घनश्याम दुबे ने सभी पार्टियों से अपील करते हुए कहा कि वह अधिक से अधिक संख्या में उत्तर भारतीय समाज के लोगों को टिकट दें ताकि समाज का उन पर विश्वास बढ़ सके। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और उत्तर भारतीय समाज का बहुत पुराना अटूट मधुर संबंध रहा। हमें इन संबंधों को किसी भी कीमत पर बरकरार रखना होगा ताकि हमारा समाज भी महाराष्ट्र की गौरवशाली संस्कृति का अंग बना रहे।
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