भाजपा की विधानसभा चुनाव व्यवस्थापन समिति में उत्तर भारतीय नेताओं की “नो एंट्री” – शिवपूजन पांडे, वरिष्ठ पत्रकार

विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी कही जाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के लिए व्यवस्थापन समिति की सूची जारी कर दी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे पाटिल को अध्यक्ष बनाया गया है। सूची में कुल 34 लोगों को शामिल किया गया है, जिन पर विश्वाश जताते हुए उनके कंधों पर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की सारी तैयारी और जिम्मेदारी डाली गई है।सूची को देखने से एक बात तो साफ हो आती है कि पार्टी को महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय समाज से जुड़ा एक भी ऐसा नेता नजर नहीं आता जिस पर पार्टी भरोसा जताते हुए सूची में शामिल करती। नौ विशेष आमंत्रित और पांच पदसिद्ध सदस्यों तक में किसी उत्तर भारतीय नेता को शामिल न करना, उत्तर भारतीय मतदाताओं को भाजपा का वोट बैंक कहनेवालों का खुला मजाक नहीं तो और क्या है ? महाराष्ट्र विधानसभा की व्यवस्थापन समिति की घोषित सूची ने उत्तर भारतीय समाज के नेताओं को साफ तौर पर बता दिया है कि राजनीति के मैदान में अभी आपको बहुत कुछ सीखना है। उत्तर भारत की बदलती राजनीति के साथ उत्तर भारतीय भी पाला बदलते रहे। कभी कांग्रेस के साथ खड़ा रहने वाला उत्तर भारतीय समाज, आज भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में खड़ा दिखाई दे रहा है। भाजपा को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि राजनीति से उत्तर भारतीयों का गहरा लगाव रहता है। कांग्रेस ने उत्तर भारतीय नेताओं को हमेशा पद, पावर और सम्मान दिया । भाजपा सम्मान तो देना चाहती है परंतु पद और पावर नहीं। उत्तर भारतीय नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल करने की बात तो बहुत दूर की है, पहले टिकट मिल जाए वही बड़ी बात है। आज उत्तर भारतीय बीजेपी नेताओं में एक भी ऐसा पावरफुल नेता नजर नहीं आता,जो दावे के साथ पार्टी के टिकट पर लड़ने या किसी उत्तर भारतीय नेता को लड़ाने की बात कह सके। जिन लोगों ने मुरली देवड़ा, रामनाथ पांडे, चंद्रकांत त्रिपाठी , रमेश दुबे, कृपाशंकर सिंह जैसे नेताओं का राजनीतिक पावर देखा है, वे आज की स्थिति को देखकर दंग हैं। ऐसे में सवाल उठता है क्या उत्तर भारतीय सिर्फ झंडा उठाने और पोस्टर्स लगाने के लिए ही हैं । उनके समाज के नेताओं को राजनीति में भागीदारी कब मिलेगी? महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन जिस तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है, उसे देखते हुए यदि उत्तर भारतीय वापस अपने पुराने खेमे में लौटने लगे तो भाजपा को सिर्फ हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।