चर्चित चेहरे, सूरत: आडंबर, आकर्षण से मुक्त मिथ्यावाद, झूठी प्रशंसा से बचकर समाज की जरूरी आवश्यकताएं हैं अपने सामर्थ्य को उसमें लगाएं
जीवन नया मिलेगा अंतिम चिता में जलकर
न जी भरकर देखा न कोई बात की।
बडी आरजू थी मुलाकात की।।
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वो अगर मुझको मिल जाए मेरी सांसों के करीब।
होठों से जुम्बिश न दूं और गुफ्तगू सारी करू।।
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तेरे आने की खबर से जब खबर महके।
तेरी खुश्बू से मेरा घर महके।।
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इस दुनिया मे कुछ लोग किसी एक कला या हुनर में दक्ष होते हैं लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं। सुंदरम भारत न्युज पोर्टल की ओर से बात कर रहा हूं ऐसी ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी निर्मलेशजी आर्य की। निर्मलेशजी आर्य एक सफल व्यापारी, कुशल वक्ता एवं मंच संचालक, अग्रणी समाज सेवक, पक्के आर्य समाजी, साहित्य प्रेमी हैं।
वर्तमान समय में 65 वर्ष की आयु में किडनी की बीमारी से जंग लड रहे हैं फिर भी उनके चेहरे पर गजब की मुस्कान और आत्म विश्वास साफ झलकता है।उनके पास पहुचते ही उन्होंने उपरोक्त शायरी सुना दी। यहां तक कि जब वे डियलासिस कराने जाते है तब हर बार डाक्टर को नयी शायरी सुनि देते हैं। जगजीत, बशीर बत्र जैस शायरों की असंख्य शायरियां उनकी जुबान पर हैं।
निर्मलेशजी सूरत शहर के सामाजिक गतिविधियों के आधार स्तंभ हैं अस्वस्थ होने के बावजूद सामाजिक कार्यक्रमों में उपस्थिती दर्ज कराते रहते हैं।
पूरे देश के अग्रवाल समाज में निर्मलेशजी का एक मात्र ऐसा परिवार है जिसने 4-4 विधवा विवाह अपने परिवार में कराया। यह समाज के लिए बहुत बडा़ उदाहरण है।
हरियाणा राज्य के भिवानी जिले के छोटे से गांव देवराला में जन्मे निर्मलेशजी की 10 वीं तक की शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में हुई। भिवानी शहर में हास्टल में रहकर पढाई किए। राजनीति और मनोविग्यान विषय से स्नातक की डिग्री हांसिल की।बचपन से ही पढाई का बहुत शौक था इसलिए लाइब्रेरी जाकर राजनीति, वेदांत और साहित्य की किताबें पढ़ते थै।
सफल व्यापारी
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शिक्षा ग्रहण करने के बाद अपनी पुश्तैनी कपडे के आढत की पारिवारिक पेढी से व्यापार का हुनर सीखा।10 जनवरी 1981 में झरिया, धनबाद में झारखंड राज्य चेम्बर आढत का काम शुरू किया।लगभग 20 साल तक परचेजिंग कंपनियों को कपडा़ दिलाते रहे।एक सफल व्यापारी साबित हुए।
सामाजिक कार्य-
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सूरत की प्रतिष्ठित अग्रसेन भवन के तीन आथार स्तंभ में से एक रह। सिटीलाइट स्थित अग्रसेन भवन के स्वप्न द्रष्टा फूलचंद जी बंसल, मामन चंद्र गुप्ता सेकरेटरी और निर्मलेशजी आर्य ज्वांइन्ट सेकरेटरी रहे।1990 में 5420 गज वार जमीन खरीदी का निर्णय हुआ। लोगों ने सहयोग की परिभाषा ही बदल दी।सामने से भरपूर डोनेशन आया।
मैं चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया। 1985 में लायंस क्लब तत्पश्चात रोटरी क्लब सूरत सी फेस अठवालाइंस के सेकरेटरी बने।
मंच संचालक-
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एक दौर वह भी था जब कोई केन्द्रीय मंत्री सूरत आता था तो निर्मलेशजी ने उस कार्यक्रम में मंच संचालन किया। उप प्रधानमंत्री घौथरी देवीलाल, 1993-1994 मेः प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह के सूरत आगमन पर मंच संघालन किया। संत सुधांशुजी महराज के प्रवचन कार्यक्रम में बालाश्रम बनाने के लिए मंच से अपील किया जिसमें डेढ करोड़ का दान आ गया परिणामस्वरूप बालाश्रम बनकर तैयार हो गया।लगातार 4 साल तक सुधांशुजी के प्रवचन कार्यक्रम का मंच संचालन करते रहे। इसी प्रकार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में बाबा रामदेव के योग शिविर मे़ मंच संचालन किया जिसमें पचास हजार से भी अधिक लोग उपस्थित रहे।
कवि सम्मेलन एवं हिन्दी साहित्य
—————————————-1995 के बाद जब सुबचन राम ने सुरत में आयकर आयुक्त का पदभार सम्हाला तब श्री सिद्धी विनायक मंदिर की मीटिंग में हिन्दी साहित्य सौरभ नामक संस्था बनी उसमें निर्मलेशजी को सेकरेटरी बनाया गया। इसके तहत 5 कवि सम्मेलन, वनबंधू परिषद, रामलीला कमेटी,जैन समाज, माहेश्वरी समाज द्वारा आयोजित लगभग 15-16 कवि सम्मेलनों का मंच संचालन किया।
जीवन के सार को अपने शब्दों में बताया – उद्देश्य विहीन जीवन नहीं जीना चाहिए।समाज को योग्य संताने देनी चाहिए जो समाज के लिए अच्छा काम करे।
जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जलकर।
निर्मलेशजी के संदेश-
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आडंबर,आकर्षण से मुक्त, मिथ्यावाद, झूठी प्रशंसा से बचकर समाज की जरूरी आवश्यकताएं हैं, अपने सामर्थ्य को उसमें लगाएं।
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दादाजी स्वर्गीय गोविन्द राम आर्य भगवान शिव के परम भक्त थे। वे आर्य समाजी थे।कन्या शिक्षा , विधवा विवाह और स्वामी दयानंद सरस्वती आनुगामी थे।निर्मलेशजी उनसे बहुत प्रभावित रहे हैं।इसीलिए जीवन में सफल रहे हैं।