अराजकता की पराकाष्ठा को लांघ चुके कट्टरपंथी बांग्लादेशी वहशी दरिंदों का आका कौन? –प्रोफेसर डॉ. सरोज व्यास

मगध साम्राज्य में नंद वंश के सम्राट धनानंद के विषय में कहा जाता है कि वह *‘धन के भंडार भरने का आदी’* था। एक बार भरी सभा में मद (अहंकार) में अंधे अभिमानी धनानंद ने स्वाभिमानी प्रखर बुद्धिमान एवं ब्राह्मण शिरोमणि, चाणक्य के रंग-रूप एवं वेशभूषा को देखकर उनका उपहास करते हुए अपमानित करके राजमहल से निकाल दिया। उसी समय कौटिल्य (चाणक्य) ने क्रोधित होकर अपनी शिखा (चोटी) खोलकर यह प्रतिज्ञा ली कि जब तक वह नंद वंश का नाश नहीं कर देंगे, तब तक अपनी शिखा नहीं बांधेंगे। किवदंतियों के अनुसार चाणक्य ने एक गरीब चरवाहे के पुत्र की प्रतिभा को देखकर, उसकी माता से उसके लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा और प्रशिक्षण हेतु स्वयं को सौंपे जाने का निवेदन किया। माता की अनुमति से चाणक्य उसे अपने साथ ले गए। धनानंद की सभा में ली गई प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए उन्होंने बालक को राजनीति, कूटनीति और युद्धनीति में पारंगत किया। आचार्य चाणक्य द्वारा प्रशिक्षित उस शिष्य ने धनानंद के साम्राज्य का पतन तथा चाणक्य की प्रतिज्ञा को पूर्ण किया। यह कोई और नहीं, अपितु विक्रमादित्य साम्राज्य के संस्थापक और भारत के अधिकांश भाग को एक शासन के सूत्र में एकीकृत करने वाले पहले शासक चंद्रगुप्त मौर्य (लगभग 321-297 ईसा पूर्व) थे।

चाणक्य को विश्व भर में लोकप्रिय अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और सफल कूटनीतिज्ञ के रूप में याद किया जाता है। *“शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं” -* आचार्य चाणक्य के इस कथन की सत्यता पर संदेह नहीं किया जा सकता। व्यक्तिगत और व्यवसायिक स्तर पर विगत 26 वर्षों से अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में अनेकों ऐसे अनुभव हुए और इस वक्तव्य को धरातल पर चरितार्थ होते देखा। चाणक्य ने स्वयं अपने कथन के एक पक्ष (निर्माण) को शिष्य चंद्रगुप्त के माध्यम से भारत में सत्यापित कर दिखाया।

दूसरे पक्ष (प्रलय) को समझने के लिए बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति को गंभीरता से समझने की आवश्यकता है। पश्चिमी पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार के अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध 26 मार्च 1971 को भारत के सहयोग से एक रक्त-रंजित युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में अस्तित्व में आया | वहाँ के संस्थापक और प्रथम राष्ट्रपति बंगबन्धु शेख मुजीबुर्रहमान की पुत्री शेख हसीना 1996 से 2001 और 2009 से 2024 तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के पद पर आसीन रहीं । 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश की सेना ने उनको जबरन त्याग-पत्र देने को बाध्य किया | शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ने के लिए मात्र 45 मिनिट का समय दिया गया और उन्होंने भागकर अपनी जान बचाने के लिए भारत में शरण ली | बांग्लादेश में उत्पन्न राजनैतिक संकट और देशव्यापी अराजकता के लिए विश्वपटल पर अमेरिका तथा चीन की भूमिका को भी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा हैं

5 अगस्त से निरंतर समाचार-पत्रों, न्यूज चैनलों, साक्षर-निरक्षर, शिक्षित जनसामान्य तथा भारतीय लोकतंत्र का शीर्ष नेतृत्व (प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, विदेशी मंत्री, रक्षामंत्री से लेकर विपक्ष के नेता), बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति पर नजर बनाए हुए है। यद्यपि सामर्थ्य अनुसार प्रत्येक स्तर पर राजनीति तथा कूटनीति पूर्ण सहयोग, सुझाव एवं सहायता भी प्रदान की जा रही है। तथापि वहाँ की भयावह स्थिति का वर्णन करना संभव ही नहीं है । आरक्षण को कम-अधिक किए जाने पर सरकार के विरुद्ध छात्रों का आक्रोश स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, लेकिन जलते, सुलगते, लुटते, पीटते और कटते हुए बांग्लादेश की ‘आरक्षण नीति की यह कैसी परिणीति’ है ? यदि कुछ हद तक इसे स्वीकार कर भी लिया जाए तो, क्या शेख हसीना के पदच्युत होकर राष्ट्र से जान बचाकर भागने के बाद प्रधानमंत्री आवास में लुटपाट और अमानवीय आचरण सही था ? महिला प्रधानमंत्री के अंत: वस्त्रों को सार्वजनिक रूप से लहराते हुये तांडव करना कहा तक न्यायोचित था ? हिन्दू मंदिरों में (इस्कॉन एवं काली मंदिर) आगजनी, लूट-खसोट एवं बेकसूर बांग्लादेशी हिन्दू नागरिकों की निर्मम हत्या एवं बलात्कार जैसे जघन्य अपराध किस लिए ? अराजकता एवं अन्याय से त्रस्त होकर युद्ध की विभीषिका को झेल कर पाकिस्तान से स्वतंत्र हुये बांग्लादेश को आखिर कौन जला रहा है ? क्या समस्त घटनाक्रम की पटकथा वास्तव में तीन छात्र नेताओं द्वारा लिखी गयी ? *नाहिद इस्लाम, आसिफ महमूद और अबू बकर मजूमदार (छात्र नेता) को ढाल बनाकर पलय को गोद में कौन पाल रहा था ?*

अनसुलझे प्रश्नों को चिंतन-मनन के लिए सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ | साथ ही एक दृष्टि बांग्लादेश के मौजूदा हालात पर – राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने संसद को भंग कर दिया और देश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को रिहा । अंतरिम सरकार का गठन हो गया, नोबल पुरुस्कार विजेता अर्थशास्त्री, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख, प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस बन गये | उन्होंने न्यूज चैनलों पर दिए गये अपने वक्तव्य मे कहा कि – *“मैं छात्रों की इच्छा का सम्मान करता हूँ, और उनके आग्रह पर लोकतंत्र की बहाली तथा देशहित में सौंपे गये पद एवं दायित्व को सहर्ष स्वीकार करता हूँ”* | उन्होंने आंदोलन का हिस्सा रहे प्रदर्शनकारी छात्रों को बधाई दी और कहा कि – ” *मैं बहादुर छात्रों को देश को दूसरा विजय दिवस मनाने का अवसर देने पर बधाई देता हूँ” ।* शेख हसीना सरकार ने जनवरी में उन्हें श्रम कानून के उल्लंघन के लिए छह महीने की जेल की सजा सुनाई थी, हालांकि उन्हें जमानत मिल गई थी। बांग्लादेश की सरकार (शेख हसीना) को दिए गये सहयोग और मैत्री के लिए भी उन्होंने भारत की आलोचना की है | शायद जनाब यूनुस भूल गये की जिस बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख वह बनें है, उसके अस्तित्व की नींव असंख्य भारतीय सैनिकों के बलिदान की ऋणी है |

भारत सनातन संस्कृति का पोषक है तथा सत्य, अहिंसा, त्याग और परोपकार सनातन के मूल मंत्र हैं। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि चाणक्य के वक्तव्य में व्यक्त प्रकृति के दोनों रूपों में से निर्माण को चाणक्य ने मानवता की रक्षा और सुशासन के लिए चुना। इसके विपरीत, इतिहास गवाह है कि धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा सदैव घर, परिवार और राष्ट्रीय स्तर पर पलय और पतन का मार्ग अपनाया गया है । वर्तमान में बांग्लादेश, पाकिस्तान, यूक्रेन और रूस इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। *“हाथ कंगन को आरसी क्या, पढे लिखे को फ़ारसी क्या,”* प्रत्यक्ष को प्रमाण नहीं चाहिए |